न जातु कामान्न भयान्न लोभाद्
धर्मं त्यजेद् जीवितस्यापि हेतोः । (महाभारतम् स्वर्ग. 5.63)
ಯಾವುದೇ ಆಸೆಯನ್ನು ಪೂರೈಸುವುದಕ್ಕಾಗಲೀ, ಭಯದಿಂದಾಗಲೀ, ಲೋಭದಿಂದಾಗಲೀ, ಜೀವವನ್ನು
ಉಳಿಸಿಕೊಳ್ಳುದಕ್ಕೇ ಆಗಲಿ ಧರ್ಮಮಾರ್ಗವನ್ನು ತ್ಯಜಿಸಕೂಡದು.
किसी भी अपेक्षा की पूर्ति के लिये, भय की वजह से,
लोभ के कारण अथवा अपने प्राणों की रक्षा करने का अवसर आने पर भी धर्म का त्याग नहीं
करना चाहिये ।
Safeguard
of Dharma, despite of any desire, fear, and greed or even at the time of
rescuing one’s own life is the moral duty.